१०.०३ व्यायामः सर्वदा पथ्यः। ०६ जैसे गरुड के पास साँप नहीं आते, वैसे ही व्यायामी के पास रोग नहीं आते।
३. व्यायामः सर्वदा पथ्यः।
कक्षा दशमी। शेमुषी।
षष्ठः श्लोकः
व्यायामस्विन्नगात्रस्य पद्भ्यामुद्वर्तितस्य च,
व्याधयो नोपसर्पन्ति वैनतेयम् इव उरगाः।
वयोरूपगुणैर्हीनमपि कुर्यात्सुदर्शनम्॥६॥
शब्दार्थ -
- व्यायामस्विनगात्रस्य - जिसके अंग व्यायाम से गीले हो चुके हैं उस के, व्यायाम से परीनोपसीन हो जाने वाले के
- व्यायामः - कसरत
- स्विन्न - पसीने से लदबद
- गात्रम् - शारीरिक अंग
- पद्भ्याम् - (दो) पैरों से
- उद्वर्तितस्य - ऊपर उठकर किए जाने वाले (व्यायाम) करने वाले के
- च - और
- व्याधयः - रोगाः। बीमारियाँ
- न - नहीं
- उपसर्पन्ति - पास आती हैं
- वैनतेयम् - गरुड के
- इव - जैसे
- उरगाः - सर्पाः। साँप
- वयोरूपगुणैः - उम्र, रूप, गुण इत्यादि से
- वयः - आयुः। उम्र
- हीनम् - गरीब, जिसके पास ..... नहीं है
- अपि - भी
- सुदर्शनम् - सुन्दर
- कुर्यात् - कर लें
अन्वय -
व्यायामस्विन्नगात्रस्य पद्भाम् उद्वर्तितस्य च (मनुष्यस्य समीपम्) वैनतेयम् इव उरगाः व्याधयः न उपसर्पन्ति। (व्यायामः) वयोरूपगुणैः हीनं (मनुष्यम्) अपि सुदर्शनं कुर्यात्।
व्यायाम से जो पसीनोपसीन हो जाता है और पैरों से ऊपर उठने वाले व्यायाम करने वाले मनुष्य के पास गरुड के जैसे साप (पास नहीं आते वैसे ही) बीमारियाँ पास नहीं आती। व्यायाम तो उम्र, सुन्दर रूप, अच्छे गुण इत्यादि से हीन मनुष्य को भी सुन्दर बना देगा।
पैरों से ऊपर उठने वाले व्यायाम यानी उठक बैठक, नीचे बैठकर उपर छलांग लगाना वगैरह जैसे व्यायाम। और ऐसे व्यायाम करने से जिसके गात्र (शरीर के अंग) स्विन्न (पसीने से लदबद) हो जाते हैं उसके पास बीमारियाँ नहीं आती, जैसे कि किसी गरुड के पास साँप नहीं आते। जो मनुष्य उम्र दराज है, यानी जिसकी उम्र ज्यादा है, जिसका रूप अच्छा नहीं है, अच्छे जिसके पास गुण भी नहीं हैं, वह मनुष्य व्यायाम करने से सुदर्शन ( सुन्दर) बन सकता है।
यह श्लोक अनुष्टुप् छन्द का है। हमने आजतक अनुष्टुप् छन्द के श्लोकों में प्रायः दो पंक्तियाँ ही देखी हैं। परन्तु कभी कभी तीन पंक्तियाँ भी हो सकती हैं।
पौराणिक कथा के अनुसार ऋषि कश्यप के दो पत्नियाँ थी - विनता और कद्रू। गरुड विनता का पुत्र था इसीलिए उसका नाम वैनतेय पड गया। वैनतेय अर्थात् विनता का पुत्र।
भावार्थ -
यथा गरुडस्य समीपं सर्पाः न आगच्छन्ति तथा यस्य मनुष्यस्य शरीरं प्रतिदिनं व्यायामेन स्वेदयुक्तं भवति, यः प्रतिदिनं पद्भ्यां उद्वर्तिव्यायामं करोति तस्य मनुष्यस्य समीपं रोगाः न आगच्छन्ति। येषां वयः अधिकं, रूपं तथा गुणाः न सन्ति तान् जनान् व्यायामः सुन्दरतां ददाति।
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व्याकरण -
- व्यायामस्विन्नगात्रस्य -
- व्यायामेन स्विन्नम् - व्यायामस्विन्नम्। इति तृतीया तत्पुरुषः। व्यायाम से पसीनो पसीन।
- व्यायामस्विन्नम् गात्रं यस्य सः - व्यायामस्विन्नगात्रः। इति बहुव्रीहिः। व्यायाम से पसीनो पसीन अंग जिसका वह।
- व्यायामस्विन्नगात्रः तस्य - व्यायामस्विन्नगात्रस्य। इति षष्ठी विभक्तिः।
- व्याधयो न - व्याधयः + न। इति उत्वसन्धिः।
- नोपसर्पन्ति - न + उपसर्पन्ति। इत गुणसन्धिः।
- वयोरूपगुणैः
- वयः च रूपं च गुणः च - वयोरूपगुणाः। इति इतरेतरद्वन्द्वः।
- तैः - वयोरूपगुणैः । इति तृतीया विभक्तिः।
- वयसा च रूपेण च गुणेन च - वयोरूपगुणैः। इति इतरेत5रद्वन्द्वः।
- वयोरूपगुणैर्हीनम् - वयोरूपगुणैः + हीनम्। इति रुत्वसन्धिः।
१०.०३ व्यायामः सर्वदा पथ्यः। ०६ जैसे गरुड के पास साँप नहीं आते, वैसे ही व्यायामी के पास रोग नहीं आते।
Reviewed by मधुकर शिवशंकर आटोळे
on
अक्तूबर 11, 2019
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