विनिपातो न वः कश्चिद् दृश्यते त्रिदशाधिप!।
अहं तु पुत्रं शोचामि, तेन रोदिमि कौशिक!॥
प्रस्तुत श्लोक ११. जननी तुल्यवत्सला (कक्षा दशमी। शेमुषी) से है। और इस पाठ का हिन्दी अनुवाद कक्षा कौमुदी पर मौजूद है। परन्तु वहाँ इस श्लोक का केवल संक्षेप में अर्थ दिया गया था। अतः इसका शब्दार्थादि के साथ विस्तृत स्पष्टीकरण यहां करने का प्रयत्न किया जा रहा है।
शब्दार्थ -
- विनिपातः - पतनम्। गिरावट, बुराई
- न - नहीं
- वः - युष्माकम्। आप सभी का {युष्मद् (त्वम्) शब्द का षष्ठी बहुवचन। युष्मद् शब्द के द्वितीया, चतुर्थी और षष्ठी के लिए विकल्प होते हैं। युष्मद् शब्द के रूप देखें }
- कश्चित् - कश्चन। कोई भी
- दृश्यते - दिखाई देता है
- त्रिदशाधिप - इन्द्र
- अहम् - मैं
- तु - तो
- पुत्रम् - पुत्र को (यहां - पुत्र के लिए)
- शोचामि - शोक (दुख) कर रही हूँ
- तेन - उसी से
- रोदिमि - (मैं) रो रही हूँ
- कौशिक - इन्द्र
अन्वय -
(हे) त्रिदशाधिप, वः कश्चित् विनिपातः न दृश्यते। अहं तु पुत्रं शोचामि। (हे) कौशिक, (अहं) तेन रोदिमि।
हे इन्द्र, आपका (यानी देवताओं का) कही भी अवनति (बुराई, भलाबुरा) नहीं दिखाई देती है। मैं तो पुत्र के लिए शोक कर रही हूँ। हे भगवान् इन्द्र, मैं उस से रो रही हूँ।
इस श्लोक में गोमाता अपने बेटे की फरियाद ले कर रोते रोते भगवान् इन्द्र के पास पहुंची है। उसे रोता हूआ देख भगवान् इन्द्र पूँछते हैं - हे शुभे, तुम क्यों रो रही हो? देवताओं में सबकुछ कुशल है न? मनुष्यों तथा गौओ में सब कुछ कुशल है न? तुम्हारा ऐसा रोना किसी छोटी वजह से नहीं हो सकता।
तब उत्तर में गोमाता कहती है - हे भगवान् इन्द्र, मुझे कहीं पर भी आपकी (यानी देवताओं की, मनुष्यों की) बुराई नहीं दिखाई दे रही है। मैं तो अपने पुत्र के लिए दुखी हूँ। (जिस पर वह किसान अत्याचार कर रहा था।) और उसी वजह से मैं रो रही हूँ।
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मूल महाभारते से श्लोक। (सन्दर्भ के लिए) |
भावार्थ -
स्वपुत्रं दुर्बलं ऋषभं पीड्यमानं दृष्ट्वा सर्वधेनूनां माता सुरभिः दुःखेन रोदिति। रुदती सा इन्द्रं प्रति गच्छति। इन्द्रः तां सुरभिं रुदतीं दृष्ट्वा चिन्तया पृच्छति - हे शुभे, त्वं किमर्थं रोदिषि? देवेषु मानवेषु धेनुषु सर्वं कुशलं वा? इति। तदा धेनुः सुरभिः उत्तरति - देवमानवेषु तु सर्वं कुषलम्। तत्र किमपि अकुशलं न दृश्यते। अहं तु मम पुत्रार्थं दुःखं करोति। तेन एव अहं रोदनं करोमि इति।
१०.०५. जननी तुल्यवत्सला। ०१ प्रथमः श्लोकः। विनिपातो न वः कश्चिद्
Reviewed by मधुकर शिवशंकर आटोळे
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नवंबर 05, 2019
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