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१०.०९ सूक्तयः। ०१. पिता यच्छति पुत्राय

०९. सूक्तयः। 

कक्षा दशमी। शेमुषी।

सर्वप्रथम पाठ का शीर्षक समझते हैं। पाठ का शीर्षक है - सूक्तयः। इसका विच्छेद ऐसे हो सकता है - सु + उक्तयः। इन दोनों शब्दों के सन्धि में सवर्णदीर्घ हो कर सूक्तयः ऐसा शब्द बन जाता है।

सु - सु एक २२ प्रादि उपसर्गों मेंं से एक है। और इसका अर्थ है - अच्छा। जैसे की हमने इन शब्दों में देखा है - सुविचार = अच्छा विचार। सुरस = अच्छा रस।
उक्तयः - यह शब्द उक्तिः इस शब्द का बहुवचन हैं। उक्तिः - उक्ती - उक्तयः॥ उक्तयः यानी बातें।
कुल मिलाकर सु + उक्तयः - सूक्तयः।
सूक्तयः यानी अच्छी बातें। हमारे लिए लाभकारी बातें। जिन वाक्यों को सुनकर हमारी कोई भलाई हो वे बातें।

प्रथमः श्लोकः

पिता यच्छति पुत्राय बाल्ये विद्याधनं महत्।
पिताऽस्य किंं तपस्तेपे इत्युक्तिस्तत्कृतज्ञता॥१॥

शब्दार्थ -


  • पिता - जनकः। 
  • यच्छति - ददाति। देता है (दा धातु)
  • पुत्राय - सुताय। आत्मजाय। बेटे को
  • बाल्ये - बाल्यकाले। बाल्ये वयसि। बचपन में
  • विद्याधनम् - विद्या-रुप-धनम्। विद्या रूपी धन
  • महत् - अधिकम्। बृहत्। महत्त्वपूर्णम्। बहुत ज्यादा। बहुत बड़ा
  • पिता - पिता ने
  • अस्य - इस के (इस बालक के)
  • किम् - क्या (यहां - कितनी, कौनसी)
  • तपः - तपस्याम्। तपस्या
  • तेपे - तपस्या की है। आचरण किया है।
  • इति - ऐसा / ऐसी
  • उक्तिः - वाक्यम्। बात
  • तत्कृतज्ञता - तस्य कृतज्ञता। उस (बेटे की पिताजी के प्रति) कृतज्ञता है

अन्वय

पिता पुत्राय बाल्ये महत् विद्याधनं यच्छति। अस्यय (पु्त्रस्य) पितां किं तपः तेपे इति (जनानाम्) उक्तिः तत्कृतज्ञता॥


हिन्द्यर्थ

पिता पुत्र को बचपन में बहुत विद्यारूपी धन देता है। (उस पुत्र को देख कर) - इस के पिता ने कितनी तपस्या की है (कि इतन अच्छा पुत्र प्राप्त हुआ) ऐसी लोगों की बात ही पुत्र की अपने पिता के लिए कृतज्ञता है।


हम आजकल देखते हैं कि आजकल माता पिता दोनों भी कही ना कही नौकरी करते हैं और अपने बच्चों की पढाई की तरफ ठीक से ध्यान नहीं दे पाते। परन्तु यदि किसी पिता ने अपने बेटे को बचपन में ही बहुत सी विद्या, ज्ञान दे दिया तो आगे भविष्य में उस बच्चे की कीर्ति पूरे समाज में होगी। और ऐसे ज्ञानवान्, गुणवान् बच्चे को देखकर लोग के मुंह से आश्चर्य से ऐसी बात निकलनी चाहिए कि - इसके पिता ने कितनी तपस्या की है कि उन्हे इतना अच्छा गुणवान् पुत्र प्राप्त हुआ। और बेटे ने भी इसी प्रकार अपने ज्ञान से अपने पिता का नाम रोशन किया तो वही बात उस बेटे की अपने पिता के प्रति सच्ची कृतज्ञता होगी।

आजकल हम देखते हैं कि पिता अपने बेटे को केवल धन और सम्पत्ति ही देते हैं। परन्तु हमारे कवि कहते हैं कि पिता को बचपन में ही अपने पुत्रों के ज्ञान देना चाहिए। यहां पर कवि ने विद्या को ही धन कहा है। अपने पुत्रों के धन तो सभी पिता देते हैं। परन्तु ज्ञान रूपी धन देना सबसे महत्त्वपूर्ण है।

और यदि किसी पुत्र के सौभाग्य से उसके पिता ने अपने बेटे को ज्ञान देना चाहा भी, लेकिन वह पुत्र यदि निकम्मा निकल जाए तो? उस पुत्र ने अपने पिता से प्राप्त ज्ञान का अनुचित उपयोग किया तो? उस पिता का अपने पुत्र को ज्ञान देकर भी क्या फायदा?
इसीलिए अपने पिता से ज्ञान पा कर पुत्र का भी कर्तव्य बनात है कि उस ज्ञान का सही उपयोग कर के अपनी कीर्ति बढाए। उस का अच्छा बरतवा देख कर लोग उस बालक की तो स्तुति करेंगे ही, परन्तु उसके साथ उसके पिता का भी गौरव करेगे। और यही बात उस पुत्र की अपने पिता के प्रति सच्ची कृतज्ञता होगी।
पिता अस्य किं तपः तेपे? लोग जब ऐसी बात करेंगे तो ऐसी बात को सुन कर उसके पिता धन्य हो जाएगे।

व्याकरण


  • पिताऽस्य - पिता + अस्य। सवर्णदीर्घः।
  • तपस्तेपे - तपः + तेपे। सत्वम्।
  • इत्युक्तिः - इति + उक्तिः। यण्।
  • उक्तिस्तत्कृतज्ञता - उक्तिः + तत्कृतज्ञता। सत्वम्।
  • तत्कृतज्ञता - तस्य कृतज्ञता। षष्ठीतत्पुरुषः।
१०.०९ सूक्तयः। ०१. पिता यच्छति पुत्राय १०.०९ सूक्तयः। ०१. पिता यच्छति पुत्राय Reviewed by मधुकर शिवशंकर आटोळे on दिसंबर 11, 2019 Rating: 5

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