३. सूक्तयः
कक्षा दशमी। शेमुषी
तृतीया सूक्तिः
त्यक्त्वा धर्मप्रदां वाचं परुषां योऽभ्युदीरयेत्।
परित्यज्य फलं पक्वं भुङ्क्तेऽपक्वं विमूढधीः॥३॥
शब्दार्थः -
- त्यक्त्वा - त्यागं कृत्वा। परित्यज्य। छोडकर
- धर्मप्रदाम् - धर्म का ज्ञान देने वाली
- वाचम् - वाणीम्। बात को
- परुषाम् - कटुवाक्यानि। कठोरां वाणीम्। कठोर बातों को
- यः - जो
- अभ्युदीरयेत् - कथयेत्। वदेत्। बोले
- परित्यज्य - त्यक्त्वा। छोडकर
- फलम् - फल को
- पक्वम् - पके हुए
- भुङ्क्ते - खादति। गृह्णाति। खाता है
- अपक्वम् - कच्चे (फल को)
- विमूढधीः - मूर्खः। मूर्खमतिः। मूरख
अन्वयः -
यः (जनः) धर्मप्रदां वाचं त्यक्त्वा परुषां (वाणीम्) अभ्युदीरयेत्, (सः) विमूढधीः पक्वं फलं परित्यज्य अपक्वं (फलं) भुङ्क्ते।
हिन्द्यर्थः -
जो मनुष्य धर्मदायी बातों को छोड कर कठोर बाते बोलता है, वह मूर्खमति (मनुष्य ऐसा समझो कि जैसे) पका हुआ फल छोड कर कच्चे फल को खाता है।
धर्म शब्द का अर्थ होता है कर्तव्य, और हमार कर्तव्य है कि सभी के साथ मीठी और अच्छी बाते करें। और ऐसी बातें सभी को अच्छी लगती है। परन्तु कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो हमेशा (जरूरत ना होने पर भी) कठोर और रुक्ष बाते करते रहते हैं। जो किसी को भी अच्छी नहीं लगती।
ऐसे मनुष्य तो मानो जैसे पके फल को छोड कर कच्चे ही फलों को खा रहे हैं। जैसे पके फल सभी को खाने में अच्छे लगते हैं और कच्चे फल खाने में अच्छे नहीं लगते। वैसे ही मीठी बाते तो सभी लोग कर सकते हैं परन्तु ऐसी मीठी बातों को छोड कर कच्चे फल खाने जैसी कठोर बाते लोग करते रहते हैं।
हमारे कवि ऐसे लोगों को विमूढधी कहते हैं। यानी मूर्खमति।
भावार्थः -
सर्वे जनाः मधुरं वक्तुं शक्नुवन्ति। तथापि केचन जनाः मधुरवाणीं, धर्मवाणीं त्यक्त्वा अधर्मयुक्तं कठोरं च वदन्ति। एतादृशाः जनाः तादृशाः मूर्खाः सन्ति यथा कश्चन मूर्खः जनः पक्वं मधुरं फलं परित्यज्य अपक्वम् एव फलं खादति। अतः सर्वदा मधुरं प्रियं धर्मयुक्तं च भाषणं करणीयम्।
ऐसे मनुष्य तो मानो जैसे पके फल को छोड कर कच्चे ही फलों को खा रहे हैं। जैसे पके फल सभी को खाने में अच्छे लगते हैं और कच्चे फल खाने में अच्छे नहीं लगते। वैसे ही मीठी बाते तो सभी लोग कर सकते हैं परन्तु ऐसी मीठी बातों को छोड कर कच्चे फल खाने जैसी कठोर बाते लोग करते रहते हैं।
हमारे कवि ऐसे लोगों को विमूढधी कहते हैं। यानी मूर्खमति।
भावार्थः -
सर्वे जनाः मधुरं वक्तुं शक्नुवन्ति। तथापि केचन जनाः मधुरवाणीं, धर्मवाणीं त्यक्त्वा अधर्मयुक्तं कठोरं च वदन्ति। एतादृशाः जनाः तादृशाः मूर्खाः सन्ति यथा कश्चन मूर्खः जनः पक्वं मधुरं फलं परित्यज्य अपक्वम् एव फलं खादति। अतः सर्वदा मधुरं प्रियं धर्मयुक्तं च भाषणं करणीयम्।
व्याकरणम् -
- त्यक्त्वा - त्यज् + क्त्वा (प्रत्ययः)
- योऽभ्युदीरयेत्
- यः + अभ्युदीरयेत्। उत्वं गुणः पूर्वरूपं च इति सन्धिकार्याणि।
- अभि + उत् + ईरयेत्। उपसर्गद्वयम्। ईर् धातुः विधिलिङ् लकारः च।
- परित्यज्य - परि + त्यज् + ल्यप्। उसपर्गः + धातुः + प्रत्ययः॥
- भुङ्क्तेऽपक्वम्
- भुङ्क्ते + अपक्वम्। पूर्वरूपम् इति सन्धिकार्यम्।
- भुङ्क्ते - भुज् + लट्लकारः।
- अपक्वम् - न पक्वम्। नञ्तत्पुरुषः समासः।
१०.०९ सूक्तयः। ०३. त्यक्त्वा धर्मप्रदां वाचम्
Reviewed by मधुकर शिवशंकर आटोळे
on
दिसंबर 12, 2019
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