९. सूक्तयः।
कक्षा दशमी। शेमुषी। CBSE
षष्ठः श्लोकः
वाक्पटुर्धैर्यवान् मन्त्री समायामप्यकातरः।
स केनापि प्रकारेण परैर्न परिभूयते।। ६।।
शब्दार्थः -
- वाक्पटुः - संभाषणचतुरः। बोलने में चतुर
- धैर्यवान् - जल्दबाजी न करने वाला
- मन्त्री - परामर्शकः। सलाह देने वाला, बोलने वाला
- सभायाम् - सभा में
- अपि - भी
- अकातरः - निडर, जो हिचकिचाता नहीं है
- सः - वह
- केन - किसी
- अपि - भी
- प्रकारेण - माध्यमेन। तरीके से
- परैः - अन्यजनैः। दूसरे लोगों के द्वारा
- न - नहीं
- परिभूयते - पराजितः भवति। पराजित किया जा सकता है
अन्वयः -
(यः) मन्त्री वाक्पटुः, धैर्यवान्, सभायाम् अपि अकातरः (अस्ति) सः परैः केन अपि प्रकारेण न परिभूयते।हिन्द्यर्थः -
जो मन्त्री बोलने में चतुर, धैर्यवान् और (भरी) सभा में भी न हिचकिचाने वाला होता है, उसे अन्य लोग किसी भी प्रकार से पराजित नहीं कर सकते।मन्त्री यानी बोलने वाला, सही सलाह देने वाला। अब जिसका काम ही बोलना है, उसे ते वाक्पटु होना ही चाहिए। अब बहुत सारे लोग बुद्धिमान् होते हैं। वे अच्छी बातों को सोच सकते हैं। परन्तु उसे भरी सभा में बोलने से हिचकिचाते हैं। ऐसे लोगों की बात मन के मन में ही रह जाती है। फिर ऐसे लोग जीवन के संघर्ष में दूसरे लोगों के द्वारा पराजित होते हैं।
इसीलिए कविकहते हैं कि बोलने में चतुर, धैरशील और सभा में बेफिक्र हो कर बोलने वाला ही मन्त्री हमेशा अजेय रहता है।
भावार्थः -
यः मन्त्री भाषाप्रयोगे दक्षः भवति, सर्वदा धैर्यं धारयति तथा च सभायां भयं न अनुभवति सः एव अन्येषां जनानां द्वारा पराजितः न भवति।व्याकरणम् -
- वाक्पटुः - वाचि पटुः। सप्तमी तत्पुरुषः।
- वाक्पटुर्धैर्यवान् - वाक्पटुः + धैर्यवान्। रुत्वसन्धिः।
- धैर्यवान्
- धैर्य + मतुप्(प्रत्ययः)
- धैर्यवत्
- धैर्यवत् + पुँल्लिङ्ग - प्रथमा
- मन्त्री
- मन्त्र् + इन्(प्रत्ययः)
- मन्त्रिन्
- मन्त्रिन् + पुँल्लिङ्ग-प्रथमा
- अप्यकारतरः - अपि + अकातरः। यण् सन्धिः।
- अकातरः - न कातरः। नञ् तत्पुरुषः।
- स केनापि - सः + केन + अपि। लोपः दीर्घः।
- परैर्न - परैः + न। रुत्वसन्धिः।
१०.०९. सूक्तयः। ०६ वाक्पटुर्धैर्यवान् मन्त्री। मन्त्री कैसा होना चाहिए?
Reviewed by मधुकर शिवशंकर आटोळे
on
दिसंबर 26, 2019
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