बहुत बारे छात्रों को समस्या होती है कि -
प्रथम नियम से हम ने जान लिया की - (एक ही पद में) ऋ/र्/ष् + न् - इस स्थिति में णत्व होता है। किन्तु
देव शब्द की तृतीया एकवचन -
- देवेन
ऐसा होता है।
परन्तु राम शब्द का तृतीया एकवन -
- रामेण
ऐसा होता है। क्यों?
नख (नाखून) इस शब्द में न है। परन्तु यही न जब शूर्प इस शब्द के साथ मिल जाता है, तो शूर्पणखा ऐसा शब्द बन जाता है। जिस में न् की जगह ण् लिख जाता है।
इस के पीछे क्या कारण है? कौन सा नियम है?
जिस की मदद से हम जान पाएगे कि न् से ण् कब बनता है। वैसे तो महर्षि पाणिनीजी ने अष्टाध्यायी में णत्व विधान से सम्बन्धित बहुत सारे सूत्र लिखे हैं। किन्तु हम छात्रों के लिए तीन सूत्र तथा एक वार्तिक पर्याप्त है।
कुल मिला कर हमें तीन नियम पढने हैं।
ध्यान रहें पाणिनीय सूत्र तथा वार्तिक छात्रों की अधिक जानकारी हेतु है। माध्यमिक शिक्षा स्तर के छात्रों की परीक्षा में सामान्यतः सूत्र नहीं पूछे जाते हैं। यदि ऐसे छात्र, जिन की परीक्षा में पाणिनीय सूत्र नहीं पूछे जाते हैं, उन्हे यदी सूत्र समझने में परेशानी हो, तो केवल नियम को समझ ने का प्रयत्न कीजिए।
णत्वम्। णत्वसन्धिः।
इस के पीछे णत्व कारणीभूत है।जिस की मदद से हम जान पाएगे कि न् से ण् कब बनता है। वैसे तो महर्षि पाणिनीजी ने अष्टाध्यायी में णत्व विधान से सम्बन्धित बहुत सारे सूत्र लिखे हैं। किन्तु हम छात्रों के लिए तीन सूत्र तथा एक वार्तिक पर्याप्त है।
कुल मिला कर हमें तीन नियम पढने हैं।
ध्यान रहें पाणिनीय सूत्र तथा वार्तिक छात्रों की अधिक जानकारी हेतु है। माध्यमिक शिक्षा स्तर के छात्रों की परीक्षा में सामान्यतः सूत्र नहीं पूछे जाते हैं। यदि ऐसे छात्र, जिन की परीक्षा में पाणिनीय सूत्र नहीं पूछे जाते हैं, उन्हे यदी सूत्र समझने में परेशानी हो, तो केवल नियम को समझ ने का प्रयत्न कीजिए।
नियम १
सूत्र - रषाभ्यां नो णः समानपदे। ८.४.१॥
वार्तिक - ऋवर्णात् नस्य णत्वं वाच्यम् ।पाणिनीय अष्टाध्यायी का सूत्र तथा कात्यायन जी का वार्तिक इन दोनों के अर्थ को मिलाकर हमारा पहला नियम बनता है -
- यदि एक ही पद में ऋ, र्, ष् से परे न् के स्थान पर ण् आदेश हो जाता है।
उदा॰
- पुष् + ना + ति = पुष्णाति।
जैसे कि इस उदाहरण में देखा जा सकता है कि ष् + ना ऐसी स्थिति है। तथा पुष्णाति यह पूरा एक पद है। अतः इस स्थिति में णत्व हुआ है।
इस नियम में - एक ही पद में - ऐसा उल्लेख है। ऐसा क्यूँ कहा गया है?
एक ही पद में अर्थात् एक ही समान पद में ऋ/र्/ष् और न् होगे तभी णत्व होगा। अन्यथा नहीं।
उदा॰
- ऋषिः + नमति। ... यहाँ रुत्व सन्धि होगा।
- ऋषिर् + नमति। .... यहाँ मुनिः तथा नमति ये दोनों अलग - अलग पद हैं। अतः णत्व नहीं होगा।
- ऋषिर्नमति।
यहा एक बात ध्यान देने योग्य है कि संस्कृत तथा हिन्दी भाषाओं में पद की व्याख्या भिन्न भिन्न है। संंस्कृत पद की व्याख्या को समझने के लिए यहाँ क्लिक कीजिए।
प्रथम नियम से हम ने जान लिया की - (एक ही पद में) ऋ/र्/ष् + न् - इस स्थिति में णत्व होता है। किन्तु
- रामेण
- र् + आ + म् + ए + ण् + अ
यहाँ र् और न् के बीच तीन वर्ण हैं। तथापि णत्व होता है। - पुष्पाणि
- प् + उ + ष् + प् + आ + ण् + इ
यहाँ भी ष् तथा न् के बीच दो वर्ण। तथापि णत्व होता है।
इन उदाहरणों में र् तथा ष् और न् के बीच मैं बहुत सारे वर्ण होने के बावजूद भी णत्व क्यों हुआ है?
इस प्रश्न का समाधान दूसरा नियम करता है।ऽ
पहला सूत्र कहता है - एक ही पद में ऋ/र्/ष् से परे न् के स्थान पर ण् आदेश होता है।
और अब दूसरा सूत्र कहता है - स्वर, कवर्ग, पवर्ग तथा य्, व्, ह् के बीच में रहने पर भी (णत्व) होगा।
कुल मिला कर अब दूसरा नियम यह बनता है -
इस प्रश्न का समाधान दूसरा नियम करता है।ऽ
नियम २
सूत्र - अट्कुप्वाङ्नुम्व्यवायेऽपि। ८.४.२॥सूत्र क्रमांक से पता चल सकता है कि यह सूत्र पहले सूत्र के तुरन्त बाद पढ़ा गया है।
पहला सूत्र कहता है - एक ही पद में ऋ/र्/ष् से परे न् के स्थान पर ण् आदेश होता है।
और अब दूसरा सूत्र कहता है - स्वर, कवर्ग, पवर्ग तथा य्, व्, ह् के बीच में रहने पर भी (णत्व) होगा।
कुल मिला कर अब दूसरा नियम यह बनता है -
- ऋ/र्/ष् तथा न् के बीच में स्वर, कवर्ग, पवर्ग, य्, व्, ह् ये वर्ण बीच में रहने पर भी णत्व हो सकता है।
- स्वर - अ। आ। इ। ई। उ। ऊ। ऋ। ॠ। ऌ। ॡ। ए। ऐ। ओ। औ
- कवर्ग - क्। ख्। ग्। घ्। ङ्।
- पवर्ग - प्। फ्। ब्। भ्। म्।
उदा॰
- रामेण
- र् + आ + म् + ए + ण् + अ
यहाँ र् और न् के बीच - आ, म्, ए - ये वर्ण हैं। इन में आ तथा ए स्वर हैं तथा म् यह पवर्ग का व्यंजन हैं। अतः इन वर्णों के बीच में रहने पर भी णत्व हो सकता है। - पुष्पाणि
- प् + उ + ष् + प् + आ + ण् + इ
यहाँ भी ष् तथा न् के बीच प् और आ हैं। इन दोनों के बीच में रहते णत्व हो सकता है। - पर्णानि
- प् + अ + र् + ण् + आ + न् + इ
इस उदारण में र् तथा न् के बीच - ण् और आ है। इऩ में से ण् के बीच में रहते णत्व नहीं हो सकता। क्यों कि ण् - स्वर, कवर्ग, पवर्ग, य्, व्, ह् इन में से नहीं है।
नियम ३
सूत्र - पदान्तस्य। ८.४.३७।
यह सूत्र कहता है कि णत्व कहा नहीं होगा। इस सूत्र के अनुसार हमारा तीसरा और अन्तिम नियम बनता है -
- पद के अन्त में णत्व नहीं होता है।
उदा॰
- रामान्
- वृक्षान्
- कुर्वन्
- चरन्
उपर्युक्त पदों में भी णत्व विधान के लिए आवश्यक दोनों नियमों की पूर्ति होती है। तथापि तीसरे नियम की वजह से यहाँ णत्व नहीं होता है। क्योंकि इन सभी उदाहरणों में न् पद के अन्त में है। और पद के अन्त में णत्व विधान कार्य नहीं करता है। अर्थात् णत्व के लिए न् पद के बीच में कही होना चाहिए। जैसे की -
- रामेण
- र् + आ + म् + ए + ण् + अ
णत्व विधान
Reviewed by कक्षा कौमुदी
on
मई 10, 2020
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