शुचिपर्यावरणम्
कक्षा दशमी। शेमुषी भाग २
श्लोक २
कज्जलमलिनं धूमं मुञ्चति शतशकटीयानम्।
वाष्पयानमाला संधावति वितरन्ती ध्वानम्॥
यानानां पङ्क्तयो ह्यनन्ताः कठिनं संसरणम्। शुचि...॥२॥
वाष्पयानमाला संधावति वितरन्ती ध्वानम्॥
यानानां पङ्क्तयो ह्यनन्ताः कठिनं संसरणम्। शुचि...॥२॥
शब्दार्थ
- कज्जल-मलिनम् - काजल जैसा काला
- धूमम् - धुआं
- मुञ्चति - त्यजति। छोड़ता है
- शतशकटीयानम् - सैकड़ो गाड़ियाँ
- वाषयानमाला - रेलगाड़ियाँ
- संधावति - दोड़ती है
- वितरन्ती - बांटते हुए
- ध्वानम् - कोलाहलम्। रवम्। भिनभिनाहट को, कर्कश आवाज को, humming
- यानानाम् - गाड़ियों की
- पङ्क्तयः - कतारें
- हि - एव। बिल्कुल
- कठिनम् - दुष्करम्। मुष्किल
- संसरणम् - भ्रमणम्। विचरणम्। घूमना
अन्वय
शतशकटीयानं कज्जलमलिनं धूमं मुञ्चति। वाष्पयानमाला ध्वानं वितरन्ती संधावति। यानानां हि पङ्कतयः अनन्ताः (अभवन्)। अतः संसरणं कठिनं (जातम्)।हिन्द्यर्थ
सैकड़ों गाड़ियां काजल जैसा धुआं छोड़ रही हैं। रेलगाड़ियाँ कोलाहल बांटती हुई दौड़ रही हैं। गाड़ियों की कतारें अनगिनत हो गई हैं। इसीलिए घूमना भी कठिन हो गया है।हम मनुष्य आदिम काल से वनों में रहते आ रहे हैं। इसीलिए हमारा शरीर पेड़ पौधों की ताज़ी हवा में तथा शान्त वातावरण में काम करने के हिसाब से विकसित हुआ है। और ऐसी हवा में ही हम मनुष्य अपना काम ठीक से कर सकते हैं। लेकिन आज हम देख सकते हैं कि महानगरों में सैकड़ों गाड़ियाँ काजल जैसा काला धुआँ छोड़ती हुई जाती है। रेलगाड़ियां कर्कश ध्वनि को खिलाती हुई दौड़ती हैं। हमारे रास्तों पर गाड़ियों की अनगिनत कतारें हो चुकी है। ऐसे माहौल में यदि हम अपने स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए बाहर घूमना चाहते हैं तो मुमकिन नहीं है।
हमे शुद्ध प्राणवायु की आवश्यकता होती है। सुबह-शाम घूमने भर से हमे पर्याप्त मात्रा में प्राणवायु मिल जाती है। किन्तु शहरों में हम घूमने निकले तो भी प्राणवायु की जगह ज़हरीली गैस से सामना करना पड़ता है। इस वजह से स्वास्थ्य तो दूर ही रह जाता है, अस्वास्थ्य का ख़तरा बना रहता है।
और हमारे रोज़मर्रा के कामों के लिए भी तो हमें घर से बाहर निकलना पड़ता है। बाहर ऐसी परिस्थिति होती है कि घूमना बहुत कठिन होता है।
हम करे तो क्या करें? घर में बैठे नहीं रह सकते और बाहर जाए तो ऐसी परिस्थिति नहीं है कि घूम सके।
हमे शुद्ध प्राणवायु की आवश्यकता होती है। सुबह-शाम घूमने भर से हमे पर्याप्त मात्रा में प्राणवायु मिल जाती है। किन्तु शहरों में हम घूमने निकले तो भी प्राणवायु की जगह ज़हरीली गैस से सामना करना पड़ता है। इस वजह से स्वास्थ्य तो दूर ही रह जाता है, अस्वास्थ्य का ख़तरा बना रहता है।
और हमारे रोज़मर्रा के कामों के लिए भी तो हमें घर से बाहर निकलना पड़ता है। बाहर ऐसी परिस्थिति होती है कि घूमना बहुत कठिन होता है।
हम करे तो क्या करें? घर में बैठे नहीं रह सकते और बाहर जाए तो ऐसी परिस्थिति नहीं है कि घूम सके।
भावार्थ
महानगराणां मार्गेषु शतशः यानानि भ्रमन्ति। यानानां च अनन्ताः पङ्क्तयः जाताः। भ्रमन्ति यानानि कज्जलम् इव मलिनं धूम्रं मुञ्चन्ति। तेन वायुप्रदूषणं भवति। रेलयानानि बहुकोलाहलं कुर्वन्ति धावन्ति। अतः जनानां बहिर्गमनम् अटनं च कठिनम् अभवत्।हिन्द्यर्थ
महानगरों के रास्तों पर सैकड़ो गाड़ियाँ घूमती है। ऐसी गाड़ियों की इतनी कतारें हो चुकी है कि कभी ख़त्म ही ना हो। घूमने वाली गाड़ियाँ काजल जैसा काला धुआँ छोड़ती है। उस से वायुप्रदूषण होता है। रेलगाड़ियाँ खूब शोर मचाते हुए दौड़ती है। इसीलिए लोगों का बाहर जाना, घूमना कठिन हो चुका है।शुचिपर्यावरणम् के अन्य सभी श्लोकों को पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक कीजिए।
व्याकरण
सन्धिः
पङ्क्तयो ह्यनन्ताः
- पङ्क्तयः + हि + अनन्ताः
उत्वम्। यण्।
समासः
कज्जलमलिनम्
- कज्जलम् इव मलिनम्
उपमानोपमेयः कर्मधारयः।
शतशकटीयानम्
- शतस्य शकटीयानानां समाहारः
द्विगुः।
वाष्पयानमाला
- वाष्पयानानां माला
षष्ठी तत्पुरुषः
अनन्ताः
- न + अन्ताः
नञ् - तत्पुरुषः
प्रत्ययः
वितरन्ती
शुचिपर्यावरणम्। श्लोक २। कज्जलमलिनं धूमं मुञ्चति। CBSE कक्षा दशमी।
Reviewed by कक्षा कौमुदी
on
मई 26, 2020
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Annatah eti padasya visheshta padam kim
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