अयि चल बन्धो! खगकुलकलरव - गुञ्जितवनदेशम्।
पुर-कलरव सम्भ्रमितजनेभ्यो धृतसुखसन्देशम्॥
चाकचिक्यजालं नो कुर्याज्जीवितरसहरणम्। शुचिपर्यावरणम्॥६॥
पुर-कलरव सम्भ्रमितजनेभ्यो धृतसुखसन्देशम्॥
चाकचिक्यजालं नो कुर्याज्जीवितरसहरणम्। शुचिपर्यावरणम्॥६॥
शब्दशः अनुवाद
- अयि - हे
- चल - चलतु। चलो
- बन्धो - भ्रातः। भाई
- खग - पक्षी। पंछी
- कुल - कुटुम्बम्। समूह, परिवार, झुंड
- कलरव - किलकिलाहट, चहचहाना
- गुञ्जित - झङ्कृत। गूंजा हुआ
- वनदेशम् - जंगल
- पुर-कलरव - शहरी शोर
- सम्भ्रमित - भ्रमित
- जनेभ्यः - लोगों के लिए
- धृतसुखसन्देशम् - जिसके पास खुशखबर है वह
- चाकचिक्यजालम् - चकाचौंध, चमक-धमक
- नो - नहीं (हां! यह संस्कृत शब्द है। नो का अर्थ संस्कृत में भी नहीं ऐसा होता है।)
- कुर्यात् - करें
- जीवितरसहरणम् - जीवन की खुशहाली का नाश
अन्वय
अयि बन्धो! पुर-कलरव-सम्भ्रमित-जनेभ्यः धृतसुखसन्देशं खगकुल-कलरव-गुञ्जित-वनदेशं चल।
(एतत् महानगरीयं) चाकचिक्यजालं जीवितरसहरणं नो कुर्यात्॥
अनुवाद
अरे भाई! शहरी कोलाहल से भ्रमित लोगों के लिए जहाँ खुशखबर है उस पंछियों के चहचहांनेसे गूंजे हुए वन में चलो। कहीं यह शहरी चकाचौंध जीवन की खुशहाली का नाश न कर ले।
भावार्थ
खगकुलकलरवः - पुरकलरवः
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खगकुलकलरवः |
इस श्लोक में उपर्युक्त दो संकल्पनाएं हैं। १. खगकुलकलरव - पंछियों का चहचहाना। २. पुरकलरव - शहरी शोर। और इन दोनों से ही कवि पुनः शहर और वन की तुलना करते हैं।
वन कैसा है? - खगकुलकलरव से गूंजा हुआ है।
और दूसरी तरफ़
शहरी लोग कैसे हैं? - पुरकलरव से भ्रमित हैं।
अब इन दोनों में से हम लोगों को किस का चुनाव करना चाहिए इस बात को कोई भी बुद्धिमान मनुष्य स्वयं ही जान लेगा।
चाकचिक्यजालम्
शहरों में हर तरफ केवल चकाचौंध है, चमक-धमक है। और यह चमक-धमक प्रकृति को नुकसान पहुँचाती है। इस चमक-धमक की तुलना यदि हम प्रकृति की सुन्दरता से करते हैं तो यह शहरी चमक-धमक नीरस मालूम पड़ती है। लेकिन अफसोस की बात तो यह है कि यह सब जानने के बावजूद भी सभी लोग वन की प्रसन्न, सुगन्धी सुन्दरता को छोड़ शहरी चकाचौंध के पीछे भाग रहे हैं।
कवि को चिन्ता है कि कही ये चमक-धमक जीवन को नीरस ना बना दे।
संस्कृत भावार्थ
महानगरीय-प्रदूषणेन कोलाहलेन च त्रस्तः कविः वनं प्रति गन्तुम् इच्छति। यतः वनं पक्षिणां कलरवेण गुञ्जितं भवति। अपरहस्ते नगरे जनानां महान् कोलाहलः भवति। अनेन कोलाहलेन पीडितानां महानागरीयाणां जानानां कृते वने सुखसन्देशः अस्ति। अतः कविः वनं गन्तुम् इच्छति। तथैव च कवेः एका चिन्ता अपि अस्ति। कविः चिन्तयति - एतत् चाकचिक्यजालं मानवजीवने विद्यमानम् आनन्दं नाशयति। तत् न भवेत् इत कवेः चिन्ता अस्ति।
हिन्दी अनुवाद
शहरी प्रदूषण और शोर से त्रस्त कवि वन जाना चाहते हैं। क्योंकि वन पंछियों के चहचहाने से गूंजता रहता है। और दूसरी तरफ शहर में लोगोंका बहुत बड़ा शोर होता है। इस शोर से पीड़ित शहरी लोगों के लिए वन में खुशहाली है। इसीलिए कवि वन जाना चाहते हैं। तथैव कवि की एक चिन्ता भी है। कवि सोचते हैं कि यह चकाचौंध कदाचित् मानव जीवन की खुशी कहीं छीन ही ना ले। और ऐसा नहीं होना चाहिए इति कवि की चिन्ता है।
व्याकरण
सन्धि
- जनेभ्यो धृतसुखसन्देशम्
जनेभ्यः + धृतसुखसन्देशम्
उत्वम्
- कुर्याज्जीवितरसहरणम्
कुर्यात् + जीवितरसहरणम्
जश्त्वम्
समास
खगकुलकलरवगुञ्जितवनदेशम्
- खगानां कुलम्
खगकुलम्
षष्ठीतत्पुरुषः - खगकुलस्य कलरवः
खगकुलकलरवः
षष्ठीतत्पुरुषः - खगकुलकलरवेण गुञ्जितः
खगकुलकलरवगुञ्जितः
तृतीयातत्पुरुषः - खगकुलकलरवगुञ्जितः वनदेशः
खगकुलकलरवगुञ्जितवनदेशः
कर्मधारयः - खगकुलकलरवगुञ्जितवनदेशम्
द्वितीया विभक्तिः
पुरकलरवसम्भ्रमितजनेभ्यः
- पुरस्य कलरवः
पुरकलरवः
षष्ठीतत्पुरुषः
- पुरकलरवेण सम्भ्रमिताः
पुरकलरवसम्भ्रमिताः
तृतीयातत्पुरुषः
- पुरकलरवसम्भ्रमिताः जनाः
पुरकलरवसम्भ्रमितजनाः
कर्मधारयः
- पुरकलरवसम्भ्रमितजनेभ्यः
चतुर्थी विभक्तिः
धृतसुखसन्देशम्
- सुखस्य सन्देशः
सुखसन्देशः
षष्ठीतत्पुरुषः - धतः सुखसन्देशः येन सः
धृतसुखसन्देशः
बहुव्रीहिः - धृतसुखसन्देशम्
द्वितीयाविभक्तिः
चाकचिक्यजालम्
- चाकचिक्यस्य जालम्
षष्ठीतत्पुरुषः
जीवितरसहरणम्
- जीवितस्य रसस्य हरणम्
षष्ठीतत्पुरुषः
प्रत्यय
- गुञ्जित - गुञ्ज् + क्त
- भ्रमित - भ्रम् + क्त
- धृत - धृ + क्त
- जीवित - जीव् + क्त
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शुचिपर्यावरणम् । श्लोक ६ । अयि चल बन्धो । Class 10 संस्कृत CBSE
Reviewed by कक्षा कौमुदी
on
जून 11, 2020
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